हिमाचल प्रदेश के गिरिपार क्षेत्र के मस्तभोज के तीन गांवों की बेटियों (धिन्टीयों) ने मिलकर एक अनोखी मिसाल पेश की है। इन गांवों की बेटियों ने उत्तराखंड और हिमाचल के ऐतिहासिक माशू स्थित परशुराम मंदिर में 11 लाख का सोने का छत्र चढ़ाया है। इसी उपलक्ष्य में, माशू परशुराम मंदिर सेवा समिति ने 29 अक्तूबर को इन बेटियों के सम्मान में सामूहिक भोज का आयोजन किया है। माशू, दोऊ (उत्तराखंड), और ठाणा गांव से करीब दो हजार बेटियां (धिन्टीया) इस आयोजन में शामिल हुई। इस आयोजन को लेकर मंदिर समिति ने जोरों-शोरों से तैयारियां की हैं।

परशुराम मंदिर के बजीर अजब सिंह चौहान ने इसे ऐतिहासिक बताया और उन्होंने कहा कि मंदिर के इतिहास में इस तरह का समारोह पहली बार हो रहा है। उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि सभी महिलाओं के लिए पीली शर्ट और सफेद सलवार का विशेष ड्रेस कोड तय किया गया है। इस अवसर पर पांच क्विंटल लड्डू का प्रसाद वितरित किया गया और उत्तराखंड व हिमाचल की संस्कृति को दर्शाने वाली रंगारंग प्रस्तुतियां भी होंगी।

परशुराम मंदिर का इतिहास और किवदंती

परशुराम मंदिर से जुड़ी एक किवदंती के अनुसार, यह मंदिर पहले उत्तराखंड के जौनसार बावर के दोऊ गांव में स्थित था। समय के साथ वहां के लोग मांस का सेवन करने लगे, जिससे परशुराम नाराज़ हो गए और गांव में कई तरह के विघ्न उत्पन्न होने लगे। तब गांव के लोगों ने परशुराम के माली (देवलू) से इस बारे में सलाह ली। माली ने बताया कि यह विघ्न परशुराम की नाराज़गी के कारण हैं। लोगों ने उनके कहने पर मांस और मदिरा का त्याग किया और देवता को माशू लाने का प्रस्ताव रखा। इसके बाद, परशुराम को माशू लाया गया और अस्थाई रूप से वहां स्थापित किया गया। कालांतर में, माशू में उनका भव्य मंदिर बनाया गया। आज भी ग्यास पर्व पर परशुराम की पालकी तभी बाहर निकलती है जब दोऊ गांव के लोग माशू पहुंचते हैं।

सामूहिक सहयोग से चढ़ाया गया भव्य छत्र

माशू, दोऊ और ठाणा गांव की बेटियों (धिन्टीया) ने मिलकर इस वर्ष सोने का छत्र चढ़ाकर अपने पूर्वजों के विश्वास को और भी मजबूत किया है। इसके पहले, दोऊ गांव की बेटियों ने सवा चार लाख का छत्र चढ़ाया था, जिसके बाद माशू और ठाणा की बेटियों ने भी उनका अनुसरण करते हुए क्रमशः छह लाख और सवा लाख का छत्र चढ़ाया। इस श्रद्धा से भरे सहयोग ने इन तीनों गांवों के लोगों में गर्व और उत्साह का माहौल बना दिया है।

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