हिमाचल में करीब 300 गांव ऐसे हैं, जो सड़क सुविधा से नहीं जुड़े हैं। इनमें कई सड़कें फाॅरेस्ट क्लीयरेंस से फंसी हैं। कई ऐसी सड़कें हैं, जिनका निर्माण शुरू तो किया गया, लेकिन बीच में ही रुक गया।

सड़कों की डीपीआर बनाने से पहले लोक निर्माण विभाग को फॉरेस्ट क्लीयरेंस सहित अन्य औपचारिकताएं पूरी करनी होगी। ऐसा करने से न तो केंद्र में सड़कों की डीपीआर फंसेगी और न ही निर्माण कार्य में बाधाएं आएंगी। हिमाचल में करीब 300 गांव ऐसे हैं, जो सड़क सुविधा से नहीं जुड़े हैं। इनमें कई सड़कें फाॅरेस्ट क्लीयरेंस से फंसी हैं। कई ऐसी सड़कें हैं, जिनका निर्माण शुरू तो किया गया, लेकिन बीच में ही रुक गया। इसका कारण बीच में लोगों की जमीन आने का कारण बताया गया है। सरकार ने औपचारिकताएं पूरी करने के लिए स्थानीय निकायों और ग्राम पंचायत की भागीदारी को भी सुनिश्चित किया है। हाल में निर्माण भवन में हुई आयोजित रिव्यू मीटिंग में इस मामले पर विस्तृत चर्चा हुई है। इसमें लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने यह आदेश दिए हैं।

उल्लेखनीय है कि सरकार हर साल विधायकों से प्राथमिकताएं मांगती है। इसमें विधायक सड़क, पानी की स्कीम आदि प्राथमिकताएं देते हैं। इसके बाद इन प्राथमिकताओं को संबंधित विभाग को भेजा जाता है। बाकायदा, स्थानीय नेताओं और विधायकों की ओर से विभाग पर डीपीआर बनाने का दबाव बनाया जाता है। ऐसे में विभाग की ओर से यह डीपीआर तैयार की जाती है, लेकिन इन डीपीआर में केंद्र की ओर से आपत्तियां लगाई जाती हैं। सबसे बड़ी फाॅरेस्ट क्लीयरेंस रहती है। इस कारण यह सड़कें फंसी रहती हैं। लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर इन चीफ अजय गुप्ता ने बताया कि लोक निर्माण विभाग के मंडल और उपमंडल स्तर पर इंजीनियरों को निर्देश दिए गए हैं कि वे पहले सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद ही सड़कों की डीपीआर तैयार करें।

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