प्रदेश की चेरी पर इस साल सूखे की मार पड़ने का अंदेशा है। बगीचों में नमी न होने के कारण चेरी उत्पादकों को इस साल उत्पादन प्रभावित होने का डर सता रहा है।

हिमाचल प्रदेश की चेरी पर इस साल सूखे की मार पड़ने का अंदेशा है। बगीचों में नमी न होने के कारण चेरी उत्पादकों को इस साल उत्पादन प्रभावित होने का डर सता रहा है। इतना ही नहीं, सूखे के कारण हिमाचल की चेरी की गुणवत्ता भी प्रभावित हो सकती है। प्रदेश में सालाना 300 से 350 मीट्रिक टन चेरी का उत्पादन होता है। इस साल सर्दियों में पर्याप्त बारिश और बर्फबारी न होने से सूखे के कारण 25 से 50 मीट्रिक टन तक चेरी उत्पादन घट सकता है। शिमला जिले के नारकंडा के चेरी उत्पादक अजय कैंथला ने कहा कि इतना सूखा पहले कभी नहीं देखा। तेज धूप से तापमान में समय से पहले बढ़ोतरी हो गई है। मार्च सूखा गया तो फ्लावरिंग सही नहीं होगी। पॉलीनेशन न होने से सेटिंग प्रभावित होगी, जिससे उत्पादन घटने का डर है। चेरी का आकार छोटा रह सकता है, फल में जूस भी कम रहेगा। फ्रूट ग्रोवर कोऑपरेटिव मार्केटिंग सोसायटी जरोल के सदस्य शमशेर ठाकुर ने कहा कि सूखे के कारण तापमान बढ़ने से गुठलीदार फलों में समय से पहले फ्लावरिंग हो गई है। चेरी में भी जल्दी फ्लावरिंग हुई तो फसल प्रभावित होगी।

चेरी को आकार और चमक के नाम पर ही दाम मिलते हैं। इस बार गुणवत्ता प्रभावित होने से नुकसान का अंदेशा है। प्रदेश में शिमला जिले के अलावा कुल्लू, मंडी, चंबा, किन्नौर और लाहौल-स्पीति जिलों में चेरी पैदा होती है। प्रदेश में सेब के साथ चेरी उत्पादन बागवानों की आर्थिकी में अहम भूमिका निभा रहा है। शिमला जिले की चेरी हवाई मार्ग से महाराष्ट्र और गुजरात तक भेजी जाती है। इसके अलावा रिलायंस और बिग बास्केट जैसी बड़ी कंपनियां भी चेरी की खरीद करती हैं। शिमला जिले में नारकंडा, कोटगढ़, बागी, मतियाना, कुमारसेन और थानाधार चेरी की पैदावार के सबसे बड़े केंद्र हैं। सेब की तुलना में चेरी को काफी अधिक कीमत मिलती है। चेरी 150 से 350 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकती है। बागवानी विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. डीआर शर्मा ने बताया की बारिश न होने के कारण बगीचों में नमी की मात्रा कम है। सूखे की स्थिति अगर लंबी चलती है तो चेरी की फसल को नुकसान पहुंच सकता है। बागवान बगीचों में मलचिंग कर सकते हैं। ऐसा करने से हल्की बारिश होने पर भी पौधों को पर्याप्त नमी मिल सकती है।

सिरमौर में बढ़ते तापमान से गेहूं की फसल पर संकट

तापमान में बढ़ोतरी का असर गेहूं की फसल पर पड़ने का अंदेशा है। मौसम में आए बदलाव के कारण असिंचित इलाकों में गेहूं के उत्पादन में 30-40 फीसदी की कमी आ सकती है। पिछले साल भी फरवरी और मार्च में अचानक तापमान बढ़ने से गेहूं की पैदावार पर भारी असर पड़ा था। इस बार भी स्थिति तरह बनने लगी है। पिछले साल गेहूं के दाने का आकार काफी छोटा रह गया। हालांकि, पहले इसका असर गेहूं पर नहीं दिखा, जब थ्रेसिंग शुरू हुई तो उत्पादन पर असर देखा। जिला सिरमौर में फरवरी में ही तापमान 25 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने लगा है। आने वाले समय में इसमें और बढ़ोतरी होगी। इस बीच यदि अच्छी बारिश नहीं हुई तो इस साल भी उत्पादन में गिरावट दर्ज की जा सकती है। बदलते मौसम से फसल के पीला रतुआ की चपेट में आने की संभावना है। कृषि विभाग की मानें तो कुछ जगह पीला रतुआ रोग के आसार जताए गए हैं। इस खतरे को लेकर सर्विलांस टीम का गठन किया गया है।

पिछले साल 40 फीसदी कम हुआ था उत्पादन

कृषि विभाग ने इस साल 5,000 मीट्रिक टन गेहूं उत्पादन का लक्ष्य रखा है। 2021-22 में जिला सिरमौर में 25,000 हेक्टेयर भूमि पर गेहूं की बिजाई की गई थी, लेकिन मौसम में बदलाव से उत्पादन 3,000 मीट्रिक टन तक सिमट गया था। इस साल 26,500 हेक्टेयर पर गेहूं की खेती हो रही है। जिले में 65 से 70 फीसदी किसान वर्षा पर निर्भर हैं। सिर्फ 25-30 फीसदी इलाकों में सिंचाई की सुविधा है। ऐसे में आए साल किसानों पर सूखे की मार पड़ रही है।

तापमान बढ़ने लगा है, लेकिन गेहूं पर इसका अभी ज्यादा असर नहीं है। यदि आने वाले एक दो सप्ताह के भीतर अच्छी बारिश नहीं हुई तो फसल पर असर पड़ेगा। पिछले साल भी बढ़ते तापमान के चलते गेहूं के उत्पादन पर असर पड़ा था।- राजेंद्र सिंह ठाकुर, कृषि उपनिदेशक, सिरमौर।

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