पानी के चश्मों, बावड़ी और प्राकृतिक जल स्रोतों के आसपास लगातार ऐसी सामग्री मिल रही है, जिससे यह खतरनाक कार्सिनोजेनिक तत्व तैयार हो रहा है।

प्रदेश में प्राकृतिक स्रोतों के पानी में खतरनाक कार्सिनोजेनिक तत्व मिला है। इस तत्व के मिलने का कारण प्राकृतिक स्रोतों में फेंके जाने वाली पूजा सामग्री, चुनरी समेत अन्य सामान है। इससे पानी में कार्सिनोजेनिक तत्व लगातार घुलता जा रहा है और पानी दूषित हो रहा है। ऐसे पानी को पीने से लोगों को कैंसर, किडनी, लीवर सिरोसिस समेत कई अन्य गंभीर बीमारियां होने का खतरा बढ़ गया है। कार्सिनोजेनिक सीधे हमारी कोशिकाओं में पहुंचकर डीएनए को नुकसान पहुंचाता है। इसका खुलासा नेशनल प्रोग्राम फॉर क्लाइमेट चेंज एंड ह्यूमन हेल्थ के एक शोध की रिपोर्ट में सामने आने पर हुआ है।

यह शोध जन स्वास्थ्य अधिकारी सोलन डॉ. एके सिंह, पर्यावरण विभाग नौणी की प्रोफेसर राधा और एसके भारद्वाज ने किया। इसका शोध पत्र तैयार कर लिया गया है। हालांकि इस खतरनाक तत्व को रोकने के लिए स्वास्थ्य और जल शक्ति विभाग लगातार कार्य कर रहे हैं। पानी के चश्मों, बावड़ी और प्राकृतिक जल स्रोतों के आसपास लगातार ऐसी सामग्री मिल रही है, जिससे यह खतरनाक कार्सिनोजेनिक तत्व तैयार हो रहा है। जिला सोलन के पानी में अधिकतर ऐसे खतरनाक तत्व मिल रहे हैं।

गौर रहे कि प्रदेश के अधिकतर लोग प्राकृतिक स्रोतों कुओं, बावड़ी, चश्मों आदि से पीने का पानी भरते हैं। वहीं, जल शक्ति विभाग की ओर से भी पेयजल आपूर्ति की जाती है। जल शक्ति विभाग तो पेयजल आपूर्ति के लिए खड्डों से पानी उठाकर फिल्टर कर रहा है, लेकिन जब पानी की किल्लत होती है तो लोग प्राकृतिक स्रोतों के पानी का उपयोग करते हैं। यह पानी लगातार प्रदूषित होता जा रहा है। इसे लेकर सरकार को विशेष योजना तैयार करने की जरूरत है।

केडमियम और क्रोमियम भी मिल रहा पानी में

केडमियम और क्रोमियम की मात्रा भी पानी में मानकों से अधिक पाई गई है। यह भी खतरनाक तत्व है। मानसून के बाद अगस्त, सितंबर और अक्तूबर में यह तत्व पानी में अधिक पाया गया है। इस दौरान नालियों और अन्य जगह बहने वाला पानी जल स्रातों से मिलता है। इस कारण भी बीमारियों का खतरा बना हुआ है। यह तत्व पानी में न के बराबर होने आवश्यक हैं।

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