केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयू) के कुलपति की नियुक्ति को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई है। वहीं, हाईकोर्ट ने आवासीय परिसर और वाणिज्यिक परिसर को किराये पर देने के मामले में अहम निर्णय सुनाया है। जानें हाईकोर्ट के बड़े फैसले.
हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयू) के कुलपति की नियुक्ति को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई है। अदालत ने केंद्र सरकार समेत सीयू के रजिस्ट्रार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। मामले की सुनवाई 15 मई को निर्धारित की गई है। देव आशीष भट्टाचार्य की ओर से दायर याचिका में कुलपति सत प्रकाश बंसल की नियुक्ति को चुनौती दी गई है। आरोप लगाया गया है कि प्रोफेसर बंसल की नियुक्ति विश्वविद्यालय अनुदान आयोग विनियम, 2010 के अनुसार नहीं की गई है। नियमों के अनुसार कुलपति के रूप में नियुक्त होने वाले व्यक्ति को विश्वविद्यालय प्रणाली में प्रोफेसर के रूप में 10 वर्ष का अनुभव या समकक्ष पद पर 10 वर्ष का अनुभव होना चाहिए। दलील दी गई कि बंसल के पास प्रोफेसर के रूप में केवल पांच साल का अनुभव है, जाे कि कुलपति के रूप में नियुक्ति के लिए उपयुक्त नहीं है। आरोप है कि सक्षम प्राधिकारी ने उन्हें 22 जुलाई, 2021 को नियम विरुद्ध सीयू का कुलपति नियुक्त किया है।
बिना तर्क के फैसले पक्षकारों के अधिकारों के खिलाफ : हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कांगड़ा के मंडलायुक्त की कार्यशैली पर कड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि मंडलायुक्त स्तर के अधिकारी का कानून से अनभिज्ञ होना दुर्भाग्यपूर्ण है। अदालत ने कहा कि बिना तर्क के फैसले पक्षकारों के मूल्यवान अधिकारों के खिलाफ होते हैं। याचिकाकर्ता शशि कुमार की ओर से ऐसे ही एक मामले की सुनवाई के बाद अदालत ने मंडलायुक्त को दोबारा तर्कयुक्त फैसला देने के आदेश दिए हैं। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने कहा कि पक्षकारों के मूल्यवान अधिकारों का निपटारा करते हुए मंडलायुक्त ने कोई तर्क नहीं दिया है। अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि मंडलायुक्त को यह याद दिलाने की जरूरत है कि वह पक्षकारों के मूल्यवान अधिकारों का निपटारा कर रहा है। इतने गूढ़ तरीके से वह बिना किसी कारण को रिकॉर्ड किए फैसला नहीं पारित कर सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि तर्कहीन निर्णय न्याय से वंचित करने के बराबर है। किसी प्राधिकरण की ओर से आदेश देने में मनमानी करना उसके व्यवहार को प्रकट करता है।
फैसला सुनाने वाले अधिकारी या प्राधिकरण की ओर से दिमाग का उपयोग न करना उनमें से एक है। अदालत ने कहा कि एक सार्वजनिक प्राधिकरण की ओर से विवेक का उचित प्रयोग किया जाना चाहिए । बिना तर्क दिए फैसले मनमाना आदेश पारित करने के संकेत है, जो कि कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है। अदालत ने मंडलायुक्त के आदेशों को रद्द करते हुए तार्किक फैसला पारित करने के आदेश पारित किए हैं। भूमि के बंटवारे से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने यह निर्णय सुनाया। 13 जून 2018 को तहसीलदार बैजनाथ ने पक्षकारों के बीच भूमि के बंटवारे संबंधी निर्णय सुनाया था। याचिकाकर्ता ने इस निर्णय को समहर्ता बैजनाथ के समक्ष चुनौती दी थी। समहर्ता ने भी तहसीलदार के निर्णय पर मुहर लगा दी। याचिकाकर्ता ने समहर्ता की ओर से सुनाए गए निर्णय को मंडलायुक्त कांगड़ा के समक्ष चुनौती दी थी। मंडलायुक्त ने बिना कोई तर्क दिए याचिकाकर्ता की अपील को खारिज कर दिया था। साथ ही भूमि के बंटवारे संबंधी तहसीलदार के निर्णय को सही ठहराया था।
आवासीय परिसर के किरायेदार नवनिर्मित वाणिज्यिक परिसर में दोबारा प्रवेश का हक नहीं रखते : हाईकोर्ट
हिमाचल हाईकोर्ट ने आवासीय परिसर और वाणिज्यिक परिसर को किराये पर देने के मामले में अहम निर्णय सुनाया है। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर ने अपने निर्णय में कहा कि आवासीय परिसर में रहने वाले किरायेदार नवनिर्मित वाणिज्यिक परिसर में दोबारा प्रवेश का हक नहीं रखते हैं।अदालत ने स्पष्ट किया कि नवनिर्मित आवास में किरायेदारों को दोबारा प्रवेश का अधिकार कानून में ही दर्ज है। यदि परिसर को पुनर्निर्माण के बाद किराये पर देना है तो निश्चित रूप से किरायेदारों को परिसर में फिर से प्रवेश करने का अधिकार है। हालांकि, यदि मकान मालिक अपनी आवश्यकता के लिए मकान का दोबारा से निर्माण करता है और नवनिर्मित आवास को व्यावसायिक उपयोग के लिए करना चाहता है तो उस स्थिति में आवासीय परिसर में रहने वाले किरायेदार दोबारा प्रवेश का दावा नहीं कर सकते। चंबा जिले के रतन चंद की याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने यह निर्णय सुनाया। याचिकाकर्ता के खिलाफ मकान मालिक ने निचली अदालत के समक्ष मकान खाली करने की याचिका दायर की थी। निचली अदालत ने मकान खाली करने के आदेशों के साथ मकान मालिक को आदेश दिए थे कि मकान के दोबारा निर्माण पर किरायेदार का दोबारा प्रवेश का हक होगा। मकान मालिक और किरायेदार ने इस आदेश को अपील के माध्यम से चुनौती दी। हाईकोर्ट ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन करने पर अपने निर्णय में यह व्यवस्था दी।
सेवा बर्खास्तगी के आदेशों को दें अपील से चुनौती
हिमाचल पथ परिवहन निगम में 30 लाख रुपये के गबन से जुड़ी याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि सेवा बर्खास्तगी के आदेशों को वैकल्पिक प्रावधान के तहत अपील के माध्यम से चुनौती दी जा सकती है। न्यायाधीश तरलोक सिंह और न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने यह निर्णय सुनाया। याचिकाकर्ता सुरेंद्र कुमार शर्मा की याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने उसे अपील के माध्यम से चुनौती देने की छूट दी है। याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई थी कि उसके खिलाफ की गई विभागीय कार्रवाई में प्राकृतिक न्याय जैसे आधारभूत सिद्धांतों का पालन नहीं किया गया। मौलिक अधिकारों का हनन होने पर वह विभागीय जांच को सीधे हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दे सकता है। अदालत ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन पर पाया कि निगम ने विभागीय कार्रवाई को अंजाम तक पहुंचाने के लिए सभी मूलभूत सिद्धांतों का पालन किया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि विभागीय अपील यदि 17 अप्रैल तक दायर की जाती है तो देरी से अपील दायर करने के आधार पर उसकी अपील को खारिज न किया जाए।